आपदा के लिहाज से चिंताएं बढ़ी
देहरादून। उत्तराखंड में मानसून ने दस्तक दे दी है। किन्तु चिंता का विषय यह है कि उत्तराखंड के लिए ये वक्त मानसून का स्वागत करने से ज्यादा, भविष्य के खतरों से निपटने वाला है। तमाम पर्यावरणविद् इसी चिंता के साथ मानसून के दौरान भूस्खलन की संभावना को बया कर रहे हैं। हैरत की बात यह है कि जिन जिलों को इसरो की रिपोर्ट में संवेदनशील माना गया था, वहां पर बड़े निर्माण से परहेज नहीं किया गया। स्थिति यह है कि अब मौजूदा मानसून सीजन के दौरान सबसे ज्यादा खतरा ऐसे ही जिलों या इलाकों में माना जा रहा है। वैज्ञानिक पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि इस बार गर्मी ने जिस तरह रिकॉर्ड तोड़े हैं, इस तरह बारिश भी पिछले सालों की तुलना में ज्यादा हो सकती है। वैज्ञानिकों का यह आकलन उत्तराखंड के लिए किसी बड़ी चिंता से कम नहीं है। जो जिले भूस्खलन के लिहाज से डिजास्टर जोन के रूप में देखे जा रहे हैं, वहां भारी बारिश की कल्पना पिछली आपदाओं की यादों को ताजा कर रही है। इसको लेकर आपदा प्रबंधन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला कहते हैं कि प्रदेश में लोगों ने पारंपरिक वास स्थलों को छोड़कर बड़ी गलती की है। पहाड़ के अधिकतर इलाके लैंडस्लाइड जोन पर मौजूद हैं। पूर्व में लोग किसी कठोर चट्टान पर ही बसते थे। अब लोगों ने सुविधा के लिए कमजोर इलाकों में बसना शुरू कर दिया और वहीं से खतरा बढ़ता चला गया।
उत्तराखंड में मानसून की दस्तक
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