देहरादून: गीता के अनुसार एक आदर्श राजनेता वही है जो विवेकपूर्ण निर्णय ले तथा निष्काम भाव से राज्य के कार्यों का जनहित में निर्वहन करे। राजनेता को किसी भी विपरीत परिस्थिति में तथा उपद्रवियों या नकारात्मक शक्तियों का सामना करने के लिए स्थिरबुद्धि होकर प्रजा के हित में सशक्त और दृढ़ होकर यथोचित राजधर्म का निर्वाह करना चाहिए और यदि जनता के हित में कठोर निर्णय भी लेने पड़े तो ले लेने चाहिए। यह कहना है प्रसिद्ध लेखिका, दार्शनिक व चिंतक डॉ कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ का। वे श्रीमद्भगवद्गीता मास महोत्सव के उपलक्ष्य में उत्तराखण्ड-संस्कृत-अकादमी, उत्तराखण्ड सरकार, हरिद्वार (जनपद अल्मोड़ा) द्वारा ‘गीता में राजनीतिक चिंतन’ विषय पर दिनांक 09 जनवरी, 2022 को आयोजित अन्तर्जालीय संस्कृत-संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में बोल रही थी।
आगे उन्होंने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता विविध ज्ञान-विज्ञान से समन्वित भारतीय संस्कृति, आदर्श जीवनशैली, निष्काम कर्म तथा उचित-अनुचित विचार आदि विषयों को उद्घाटित करती है। गीता में लोकसंग्रह की दृष्टि से अनेक समस्याओं का समुचित समाधान है। इसीलिए यद्यपि यह समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी है; तथापि वर्तमान परिदृश्य में राजनेताओं को राजधर्म सीखने के दृष्टिकोण से यह पठनीय, संग्रहणीय तथा अनुकरणीय है।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि राजनीति में जो विसंगतियाँ और विकृतियाँ आयी हैं, गीता के अनुसार उनका मूल कारण काम अर्थात् इन्द्रिय सुख है। यदि समाधान खोजना है तो गीता की तत्त्वमीमांसा, ज्ञानमीमांसा व नीतिमीमांसा को यथोचित ढंग से समझकर सत्त्व, रजस् और तमस् इन त्रिगुणों में संतुलन लाकर राजनयिकों व सामान्य जन को व्यक्तित्व परिष्करण करना होगा। उन्होंने उत्तराखण्ड को संस्कृत भूमि के रूप में संपोषित करने और गीता मास आयोजन के लिए वर्तमान सरकार और उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी के प्रयासों को भूरि-भूरि प्रशंसा भी की।